फलाहार से रोग निवारण

फलों के रस कृमिनाशक होते हैं। उनके उपयोग से हमारे शरीर में स्थित रोग-कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। डाक्टरों का कहना है कि फलों में जो साइट्रिक एसिड और फॉलिक एसिड होता है उनके संपर्क में आकर कीटाणु क्षण के लिए भी ठहर नहीं सकते। नींबू और खट्टे सेब का रस तो इस काम को और भी तेजी से करता है। यही कारण है कि घावों पर नींबू का हल्का रस लगा देने के बाद खुला छोड़ देने का रिवाज बढ़ रहा है। अपने कृमिनाशक प्रभाव के कारण पायरिया रोग में नींबू का रस मुँह और दाँत साफ करने के लिये अधिक व्यवहृत होता है। दाद पर जो नींबू लगाने से दाद अच्छे हो जाते हैं, वह इसका कृमिनाशक प्रभाव ही है। कृमि के डर से जो लोग पानी उबाल कर पीते हैं, यदि वे पानी में नींबू का रस निचोड़कर पीएं तो वही काम निकल सकता है।

ज्वर के रोगी को तो यदि कोई भी भोजन दिया जा सकता है तो वह फलों का रस ही है। जर्मनी में ऐसे रोगियों को किशमिश, मुनक्का आदि मीठे फलों को उबाल कर उसका पानी छानकर पिलाने का आम रिवाज है। अनानास, अनार, नींबू, नारंगी, सेब, अँगूर, मकोय, मुनक्का आदि के रस को पानी में मिलाकर ज्वर के रोगी को फायदे के साथ पिलाया जा सकता है। इस विधि से रोगी पानी अधिक पी सकेगा और फलों का रस भी शरीर शुद्धि में सहायक होगा। गुर्दे आदि की बीमारी में जिसमें अधिक पेशाब लाने की जरूरत होती है, इस विधि से पानी अधिक पिलाया जा सकता है।

कब्ज दूर करने के लिये फल से अच्छा सहायक मिलना कठिन है। इस रोग को दूर करने के लिए फल भोजन से तुरन्त पहले या थोड़ा पहले खाने चाहिये। यदि नाश्ते के लिये ऐसे रोगी केवल फल का व्यवहार करें तो अधिक लाभ होगा। भोजन के साथ फल का व्यवहार करते समय यह अवश्य ख्याल रखना चाहिये कि फल खट्टे न हों। श्वेतसार मुँह की लार से पचता है और खटाई के व्यवहार से लार निकलना कम हो जाता है अतः यदि खट्टे ही फलों का व्यवहार करना हो तो उन्हें भोजन के अंत में करना चाहिये।

गठिया, अनिद्रा, पुराने सिरदर्द के रोगी यदि अधिकतर फलों का व्यवहार करें तो वे धीरे-धीरे कुछ दिनों में अवश्य अच्छे हो जायेंगे।

जिनकी जबान हमेशा गंदी रहती है, मुँह से बदबू आया करती है, यदि वे कुछ दिनों तक केवल फल या फल और गेहूँ के आटे की रोटी खाकर रह जायं तो उनकी जबान साफ हो जाय और मुँह से बदबू आना बंद हो जाय। ऐसे रोगियों के लिए अच्छा होगा कि वे सवेरे केवल फल, दोपहर को रोटी और शाम को फल के साथ कुछ मेवे भी लें। इससे भोजन की ताकत भी बनी रहेगी और उनका रोग भी चला जायगा।

फलों का रस सुपाच्य होने के कारण बच्चों के लिये एक बहुत ही उपयोगी भोजन है। टमाटर या संतरे का रस उन्हें दूध के साथ पिलाया जाय तो बहुत लाभ हो।

 

अखण्ड ज्योति, मई 1945

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