आपान मुद्रा और प्राण मुद्रा दोनों ही प्राचीन योग मुद्राओं हैं जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करते हैं। ये मुद्राएँ हाथों के विशेष स्थितियों को उचित करके प्राण (ऊर्जा) को नियंत्रित करने की क्षमता रखती हैं।
अपान मुद्रा
अपान मुद्रा का शाब्दिक अर्थ है “वायु को बाहर निकालने वाली मुद्रा”। यह मूल (मूलाधार) चक्र से जुड़ी हुई है, जो हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले सिरे पर स्थित होती है और अपान वायु को नियंत्रित करती है। अपान वायु नीचे की ओर गति करने वाली वायु है जो उत्सर्जन और पाचन प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है।
आपान मुद्रा (Apan Mudra) के लाभ:
1.मल त्याग को संतुलित करने में सहायक होता है।
2.श्वसन और प्राण-वायु के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करता है।
3.पाचन को सुधारता है और शरीर की शक्ति बढ़ाता है।
4.दिल के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
प्राण मुद्रा
प्राण मुद्रा का शाब्दिक अर्थ है “जीवन शक्ति वाली मुद्रा”। यह स्वास्थ्य और कल्याण के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण ऊर्जा बल, प्राण को बढ़ाने के लिए जानी जाती है। यह अंगूठे और अनामिका उंगली को मिलाकर बनाई जाती है।
प्राण मुद्रा (Pran Mudra) के लाभ:
1.ऊर्जा को बढ़ाता है और थकावट को कम करता है।
2.मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है और मन को शांत करता है।
3.प्राण और प्राणवायु के प्रवाह को संतुलित करता है।
4.बुद्धि को शक्तिशाली और चित्त को स्थिर करता है।
5.ये मुद्राएँ नियमित रूप से किया जाता है, प्राणायाम और ध्यान के साथ संयुक्त रूप से लाभकारी होते हैं।
सावधानियां
1.यदि आपको अग्नाशयशोथ या कोई अन्य पाचन संबंधी समस्या है तो अपान मुद्रा का अभ्यास करने से पहले किसी योग गुरु से सलाह लें।
2.गर्भावस्था के दौरान भी इस मुद्रा का अभ्यास करने से बचें।
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